Shodashi - An Overview
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The power point in the middle of the Chakra shows the highest, the invisible, and also the elusive Centre from which your entire figure Bhandasura and cosmos have emerged.
The image was carved from Kasti stone, a rare reddish-black finely grained stone utilized to manner sacred pictures. It had been brought from Chittagong in present day Bangladesh.
Goddess is commonly depicted as sitting down over the petals of lotus that's retained around the horizontal human body of Lord Shiva.
साम्राज्ञी चक्रराज्ञी प्रदिशतु कुशलं मह्यमोङ्काररूपा ॥१५॥
साशङ्कं साश्रुपातं सविनयकरुणं याचिता कामपत्न्या ।
शैलाधिराजतनयां शङ्करप्रियवल्लभाम् ।
ईक्षित्री सृष्टिकाले त्रिभुवनमथ या तत्क्षणेऽनुप्रविश्य
The above mentioned one is just not a Tale but a legend and a simple fact since the particular person blessed by Sodhashi Tripur Sundari, he will become the regal human being. He achieves every little thing due to his wisdom, desire and workmanship.
भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती here है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।
॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥
ऐसी कौन सी क्रिया है, जो सभी सिद्धियों को देने वाली है? ऐसी कौन सी क्रिया है, जो परम श्रेष्ठ है? ऐसा कौन सा योग जो स्वर्ग और मोक्ष को देने वाला? ऐसा कौन सा उपाय है जिसके द्वारा साधारण मानव बिना तीर्थ, दान, यज्ञ और ध्यान के पूर्ण सिद्धि प्राप्त कर सकता है?
The Mahavidya Shodashi Mantra fosters emotional resilience, encouraging devotees strategy lifestyle by using a quiet and continuous intellect. This reward is valuable for people encountering tension, mainly because it nurtures inner peace and the ability to retain psychological stability.
सा देवी कर्मबन्धं मम भवकरणं नाश्यत्वादिशक्तिः ॥३॥
पञ्चब्रह्ममयीं वन्दे देवीं त्रिपुरसुन्दरीम् ॥५॥